हरिद्वार : देवभूमि उत्तराखंड

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हरिद्वार: हरि का द्वार अर्थात् भगवान का द्वार !   दोस्तों मेरा ये सफर हरिद्वार का था फिर आगे ऋषिकेश का ।  इस कड़ी में आप को हरिद्वार से रूबरू करवाते हैं। आप का कीमती  समय बर्बाद ना करते हुए चलिए सफर की शुरुआत आप के शहर से  करते हैं।       आप जिस भी शहर से आते हो यहाॅ आने के लिए सीधा या अल्टरनेट रुप से रेल की सुविधा है की नहीं ये देख लें। यदि  आप हवाई सफर का लुत्फ उठाना चाहते हैं तो फिर दिल्ली या  देहरादून आ सकते हैं और फिर वहां से यहां आ सकते हैं। यहां आने  के बाद आपको रहने के लिए कम बजट में आश्रम मिल जायेगा  जिसमें आपको एक कमरा उपलब्ध कराया जाएगा। ज्यादा बजट  में होटल की भी सुविधा है । आप अपने बजट के अनुसार ठहर  सकते हैं। ऑनलाइन गूगल मैप से भी अपने नजदीकी आश्रम और  होटल वालों से संपर्क कर सकते हैं।         यहां आने के बाद आपको यहां के प्रसिद्ध स्थल हर की पौड़ी आना होगा। यहां आने के लिए आपको रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड दोनों  जगह से आटो की सुविधा मिल जायेगा। आप यहां  • गंगा स्नान कर सकते हैं।  • सायंकाल गंगा आरती देख सकते हैं। नोट : गंगा घाट स्थल को साफ रखने की जिम्मेदारी पर्यटक की  भी

आखिर सरकार को क्यों नहीं अच्छी लगती छात्र राजनीति ?

अगर सरकार की बात करें तो चाहे आज की सरकार हो या पहले की सरकार हो किसी को छात्र राजनीति अच्छी नहीं लगती है जबकि हकीकत यह है कि अधिकांश दिग्गज नेता छात्र राजनीति से निकल कर आये ।

          देश के तमाम विश्वविद्यालयों मे छात्रों दारा सरकार का विरोध करना , छात्रों पर अंकुश लगाना और राजनीतिक कारनो से छात्रों को  निष्कासित करना कहीं ना कहीं सरकार पर सवाल खड़ा कर रहीं है । छात्र राजनीति ने सदा देश हित मे अपना योगदान दिया है जब - जब सरकार को अंहकार हुआ उसके विरोध मे छात्रों ने आवाज बुलंद किया है चाहे हमारे देश की आजादी की बात हो या छात्र आंदोलन का हो हर समय छात्रों ने अपना अहम योगदान दिया , लेकिन हर समय सरकार ने युवाओं और छात्रों को दबाने का प्रयास किया यदि कोई छात्र सोशल मीडिया मे सरकार के गलत नीतियों के खिलाफ लिखता है तो विश्वविद्यालय द्वारा उसे निष्कासित कर दिया जाता है इसलिए क्योंकि उसने सरकार के विरोध जाकर लिखा है लेकिन एक बात स्पष्ट है ।

 इसमें हमारे देश के कुलपतियों , विश्वविद्यालय प्रबंधन और शिक्षकों का योगदान है ।  एक समय था जब गुरु अपने शिष्य को ईमानदारी और राष्ट्रहित मे अपना योगदान देने के लिए कहते थे वो आज समय बदल गया है आज वो सरकार के समर्थन मे है बल्कि गुरु को राष्ट्रहित सर्वोपरि रखना चाहिए ना कि पार्टी सर्वोपरि।
      ऐसी बात नहीं है कि विश्वविद्यालय के हर शिक्षक या कुलपति ऐसे है । आज भी अच्छे शिक्षक या कुलपति है तभी तो उनके शिष्य आज भी सरकार के गलत नीतियों का विरोध करते है ।  इसका खामियाजा इन छात्रों के साथ - साथ उनके शिक्षकों को भी भुगतना पड़ता है उन्हें भी कॉलेज से निष्कासित कर दिया जाता है लेकिन सरकार या भष्ट विश्वविद्यालय प्रबंधन यह भूल जाती है की गुरु को शिक्षा या राष्ट्रहित मे अपने शिष्यों को बेहतर बनाने के लिए विश्वविद्यालय एकमात्र रास्ता नहीं है । सड़क पर खड़े एक असाधारण बालक को भी अपना शिष्य बनाकर अहंकारी सरकार के खिलाफ खड़ा कर सकते है ।
        छात्रों को भी सोचना चाहिए की छात्र राजनीति छात्रों के हित में और देशहित मे लड़ना चाहिए ना की पार्टियों के हित मे राजनीति करना चाहिए ।


  •     ✍ अमलेश प्रसाद

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