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💔 रिश्ते: प्रेम, भय और आज की युवा सोच

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हाल ही में  एक राज्य में हुई  घटना और नीली ड्रम का प्रकरण पुरुषों के बीच शादी को लेकर एक गहरा डर और असुरक्षा का भाव उत्पन्न कर रहा है। इसने हमें सोचने पर मजबूर कर दिया है कि — क्या हम सच में अपनी युवा पीढ़ी को नहीं समझ पा रहे हैं, या समझ कर भी अनदेखा कर रहे हैं? हम आज भी उस पुरानी रुढ़िवादी सोच को अपने दिमाग से निकाल नहीं पाए हैं। सिर्फ समाज में अपनी खोखली छवि बनाए रखने के लिए हम वास्तविकता से आंखें मूंद लेते हैं। अगर हम मानते हैं कि युवा पीढ़ी को प्रेम और रिश्तों की समझ नहीं है, तो क्या यह हमारी जिम्मेदारी नहीं बनती कि हम उन्हें समझाएँ? "प्रेम त्याग और समर्पण है। यदि तुममें यह भावना है, तो प्रेम करो। यदि नहीं है, तो जिससे प्रेम करते हो, उसी से विवाह  करो।" अब यहाँ एक और बात समझने की है — क्या तुम कानूनी रूप से 18 और 21 वर्ष के हो? क्या तुम्हें सही और गलत की समझ है? क्या तुम जीवन को तार्किक रूप से समझने लगे हो? यदि हाँ, तो भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 तुम्हें यह मौलिक अधिकार देता है कि तुम अपनी पसंद से शादी कर सको। यदि कोई इसमें बाधा डालता है, तो तुम प्रशासन से अपनी सुरक...

मेरा हक, मेरा अधिकार :)

  " कौन सहेगा समय वक्त की मार सितमगर के सितम अब तो है बस न्याय की दरकार "                  - हैमलेट  शेक्सपियर नाटक के पात्र हैमलेट का यह कथन  वर्तमान न्याय की व्यवस्था पर सटीक बैठती है। इस आलेख की शुरुआत हम एक लघु कहानी से  करेंगे जो पुर्ण रूप से बनावटी हैं लेकिन यह कहानी आज के व्यवस्था को उजागर करती है।               यह कहानी एक ग्रामीण पृष्ठभूमि की लड़की मालती की (काल्पनिक नाम )  है जो बचपन से नटखट थी उसे वक्त के साथ बदलने और समय के साथ चलने का हुनर बखूबी आता था वह पुराने जमाने की बंधन को तोड़ नये तरीका से जिंदगी जीना चाहती थी अपने घर पर वो अपने सपनो को परवान भी दे रही थी लेकिन उसकी जिंदगी मे एक नया मोड़ उस समय आया जब उसके माता - पिता उसकी शादी के सिलसिले में उससे बात करने आये पहले तो वो मना कर दी क्योंकि उसके सपने बड़े थे वो अपनी पढ़ाई पूरी कर नौकरी करना चाहती थी लेकिन अंततः मान गई जब लड़केवाले नौकरी करने पर  राजी हो गये। लड़केवाले भी उसके पिताजी के काफी समझाने क...

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