" कौन सहेगा समय वक्त की मार सितमगर के सितम अब तो है बस न्याय की दरकार "
- हैमलेट
शेक्सपियर नाटक के पात्र हैमलेट का यह कथन वर्तमान न्याय की व्यवस्था पर सटीक बैठती है। इस आलेख की शुरुआत हम एक लघु कहानी से करेंगे जो पुर्ण रूप से बनावटी हैं लेकिन यह कहानी आज के व्यवस्था को उजागर करती है।
यह कहानी एक ग्रामीण पृष्ठभूमि की लड़की मालती की (काल्पनिक नाम ) है जो बचपन से नटखट थी उसे वक्त के साथ बदलने और समय के साथ चलने का हुनर बखूबी आता था वह पुराने जमाने की बंधन को तोड़ नये तरीका से जिंदगी जीना चाहती थी अपने घर पर वो अपने सपनो को परवान भी दे रही थी लेकिन उसकी जिंदगी मे एक नया मोड़ उस समय आया जब उसके माता - पिता उसकी शादी के सिलसिले में उससे बात करने आये पहले तो वो मना कर दी क्योंकि उसके सपने बड़े थे वो अपनी पढ़ाई पूरी कर नौकरी करना चाहती थी लेकिन अंततः मान गई जब लड़केवाले नौकरी करने पर राजी हो गये। लड़केवाले भी उसके पिताजी के काफी समझाने के बाद राजी हुए और फाईनल हुआ की पढाई समाप्त होने के बाद शादी होगी।
कुछ माह के बाद मालती के स्नातक का परीक्षा समाप्त हो गयी और वह राजपुर गाँव(काल्पनिक) के मानसिंह ( काल्पनिक) के साथ परिणय सूत्र में बंध गई। दोनों के शादी के कुछ वर्ष बित गये फिर दोनों के बीच रिश्तो को लेकर अनबन शुरू हो गयी जिसके कारण मामला तुल पकड़ लिया और मालती अपने ससुराल से घर आ गयी। कुछ वर्ष बितता गया और दोनों के बीच मामला समाप्त होने के बजाय बढ़ता गया। आपसी रिश्ते टूट गये और तलाक पर आकर ठहर गया। इधर मालती मानसिंह पर केस कर दी फिर केस कई वर्षों तक चली उससे पहले मानसिंह दूसरी लड़की से शादी कर लिया। इधर मालती न्याय का इंतजार करती रही अंततः कुछ वर्ष बाद मालती को न्याय मिला और मानसिंह की संपत्ति मे मालती हकदार बन गई।
मानसिंह किसी भी हाल मे मालती को संपत्ति में हक नहीं देना चाहता था लेकिन केस मे जीत मालती की हुई जिसके कारण मानसिंह मजबूर होकर मालती को मारवा दिया और उसके परिजन को धमकी दे दिया लेकिन इस धमकी से उसके परीजन डरने वाले नहीं थे उन्होंने थाने में FIR लिखवाया फिर मानसिंह को पुलिस गिरफ्तार कर ली और वह न्याय के चुंगल मे आ गया लेकिन अपने पैसे और पहचान के दम पर राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण मानसिंह सलाखों के अंदर ज्यादा दिन नहीं रह सका और अंततः बाहर आ गया। बाहर आने के बाद उसके दबाव के कारण मालती के परिवार चुप हो गये और मालती के कातिल जेल के सलाखें के बाहर हो गया और मालती के परिवार को न्याय नहीं मिल पायीं।
आज के इस दुनिया में कुछ लोग का सोच मानसिंह जैसा है जो समाज को पुराने हासिए पर रखना चाहते हैं जो समाज को लिए कलंक है। बदलते वक्त के साथ बदलना चाहिए और दुसरो के भावना और सपने का कर्द करना चाहिए और उन्हें स्वेच्छा से जीने का हक देनी चाहिए रिश्तों में आपसी रंजिशें होतें रहते हैं उन्हें आपस में बैठ कर सुलह कर लेना चाहिए और आगे बढ़ना चाहिए।
प्रशासन को भी एेसी खबरों पर सतर्क रहना चाहिए और एेसे FIR पर अपने तरफ से बिना राजनीतिक दबाव के कारवाई करनी चाहिए जिसके कारण कोई न्याय से वंचित न हो और हम सब मिलकर एक बेहतर समाज का निर्माण कर सकें।
आए दिन खबरों में मालती जैसी कितनी महिलाओं पर कभी दहेज को लेकर शोषण तो कभी घरेलू हिंसा के खबरें आते रहती हैं जो बेहद दुखद है। वक्त है बदलाव का इसलिए अब समय के साथ सब को बदलना चाहिए और एक बेहतर समाज के परिकल्पना को साकार करनी चाहिए ।
( अमलेश प्रसाद , संस्थापक - हिन्दी इन वर्ल्ड न. 1 ब्लाॅग )
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