हरिद्वार : देवभूमि उत्तराखंड

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हरिद्वार: हरि का द्वार अर्थात् भगवान का द्वार !   दोस्तों मेरा ये सफर हरिद्वार का था फिर आगे ऋषिकेश का ।  इस कड़ी में आप को हरिद्वार से रूबरू करवाते हैं। आप का कीमती  समय बर्बाद ना करते हुए चलिए सफर की शुरुआत आप के शहर से  करते हैं।       आप जिस भी शहर से आते हो यहाॅ आने के लिए सीधा या अल्टरनेट रुप से रेल की सुविधा है की नहीं ये देख लें। यदि  आप हवाई सफर का लुत्फ उठाना चाहते हैं तो फिर दिल्ली या  देहरादून आ सकते हैं और फिर वहां से यहां आ सकते हैं। यहां आने  के बाद आपको रहने के लिए कम बजट में आश्रम मिल जायेगा  जिसमें आपको एक कमरा उपलब्ध कराया जाएगा। ज्यादा बजट  में होटल की भी सुविधा है । आप अपने बजट के अनुसार ठहर  सकते हैं। ऑनलाइन गूगल मैप से भी अपने नजदीकी आश्रम और  होटल वालों से संपर्क कर सकते हैं।         यहां आने के बाद आपको यहां के प्रसिद्ध स्थल हर की पौड़ी आना होगा। यहां आने के लिए आपको रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड दोनों  जगह से आटो की सुविधा मिल जायेगा। आप यहां  • गंगा स्नान कर सकते हैं।  • सायंकाल गंगा आरती देख सकते हैं। नोट : गंगा घाट स्थल को साफ रखने की जिम्मेदारी पर्यटक की  भी

राजनीति का बदलता परिदृश्य ( भाग - 2 )

  गांधी जी इस सत्याग्रह तक ही नहीं ठहरे इसके बाद वो अहमदाबाद मिल हड़ताल के समर्थन के लिए अहमदाबाद पहुंचे वहाँ मिल मजदूरों के समर्थन में खड़ा रहे। 

            जबकि आज कई सारी कंपनियों में सस्ते श्रमिक के नाम पर सुबह से शाम तक बहुत कम वेतन मे खटाया  जाता है ना रहने की व्यवस्था ना खाने की सही व्यवस्था, खाने के नाम पर एक समय खानापूर्ति की जाती हैं। ये श्रमिक देश के विकास मे योगदान देते हैं फिर इनके साथ हो रहा अन्याय किसी को नहीं दिखता हैं आखिर क्यों? 
    राजनीतिक इच्छा शक्ति रहती तो कोई ना कोई राजनेता इनके लिए जरूर आता। सिर्फ चुनाव के समय आकर इनकी बातों को सुनना राजनीतिक स्वार्थ की ही बात हैं। 

गांधी जी का अगला पड़ाव खेड़ा सत्याग्रह हैं। जहाँ किसानों से अधिक लगान वसूलने का मामला सामने आया है। गांधी जी सरदार पटेल के साथ मिलकर खेड़ा के किसानों से लगान ना देने का अनुरोध किया । अंततः कमिटी बनी तथा उसने लगान के दरो का निर्धारण किया तथा बढ़ा हुआ दर वापस ले लिया। 
     
गांधी जी के लिए देश के अन्नदाता कभी राजनीतिक फायदे के लिए नहीं थे। उनके लिए देश के अन्नदाता देश के पालनहार थे। गाँव की आर्थिक स्थिति इनके कंधों पर थीं। देश भूखे की समस्या के चपेट में ना रहें इसके लिए उनहोंने भारतीय अर्थव्यवस्था को ग्रामीण अर्थव्यवस्था से रेखांकित किया। 

    इसलिए  देश के स्वतंत्रता के पश्चात् हमारे संविधान निर्माताओं ने गांधी जी के दूरदृष्टि सोच को राज्य के नीति निदेशक तत्वों में सम्मिलित किया। 

लेकिन आज हमारे राजनेता या कहें तो युवा राजनेता कितना गांधी जी को पढ़कर उनसे सीखते हैं तथा अपने राजनीतिक जीवन में उतारते हैं । ये वो ही बता सकते हैं। 

  इसके बाद गांधी जी खेड़ा के किसानों की मदद की । तो वही 1920 में देश के लोगों से असहयोग आंदोलन से जुड़ने की अपील की, सभी भारतीयों अंग्रेजों का सहयोग ना करें,देश के युवा राष्ट्रीय स्कूल में पढ़ने जाए, अंग्रेजों द्वारा संचालित स्कूलों का त्याग करें। ब्रिटिश प्रशासन में कार्य कर रहे भारतीय सिपाही अपने लोगों पर गोली ना चलाए। 
  गांधी जी असहयोग आंदोलन को राष्ट्रीय मंच के तौर पर रखकर अन्य आंदोलन जैसे खिलाफत आंदोलन तथा क्षेत्रीय आंदोलन को इसमें सम्मिलित कर पूरे भारतीय को एकजुट कर दिये। अंततः अंग्रेजों को झुकना पड़ा लेकिन तभी चौरा - चौरी की घटना हो गयी जो हिंसा का रूप ले लिया जिसके कारण गांधी जी आंदोलन को वापस ले लिए। आंदोलन वापस लेने के कारण गांधी जी को आलोचना का भी सामना करना पड़ा। 
      गांधी जी का मकसद था भारतीय को एकजुट करना बिना हिंसा के अहिंसा के मार्ग पर चलकर वो चाहते थे कि भारतियों पर लाठियां और गोलियां ना चले यदि एकबार बर्बरता से दमन हुआ तो फिर आंदोलन को खड़ा करने मे काफी लंबा वक्त लगेगा। 
  
   
          

             

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