The Story Of Metro City
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सारांश :-
यह कहानी हैं दो दोस्त रवी मोहन और सोहन के संघर्ष
की जो गाँव से मेट्रो -सीटी की ओर रोजगार के लिए
पलायन कर जातें उनका साथ उनकी पत्नी सुनैना और सुलेखा देती हैं।
यहाँ आने के बाद दोनों दोस्त काफी तरक्की करते
हैं। एक दोस्त रोजगार कर खुद की कंपनी खड़ा कर लेता
है। वही दूसरा दोस्त एक मलटी नेशनल कंपनी में प्रबंधन के उच्च पद पर कार्यरत हैं।
आज दोनों दोस्त अपने माता - पिता के साथ रहते हैं।
वही रवी मोहन की बेटी मानसी दिल्ली विश्वविद्यालय से
स्नातक करने के बाद अमेरिका में एमबीए की पढ़ाई
पूरी करती है। तो वही सोहन का बेटा सौर्य कुमार दिल्ली विश्वविद्यालय से लाॅ की पढ़ाई पूरा कर रहा है।
मानसी वापस भारत आकर अपने पिता के साथ मिलकर एक नये बिजनेस प्रोजेक्ट पर कार्य करतीं हैं। इसको
कुमार रणवीर से प्यार हो जाता है जो उस समय एक मामूली सा लेखक रहता है।
उधर सौर्य कुमार को अपने काॅलेज की टाॅपर मेघा सिंह
से प्यार हो जाता है। उसके पिताजी सूर्यपूर के सरपंच
हैं। जो दिल्ली से 120 किमी दूर है। बाद में दोनों बिछड़ जाते हैं क्योंकि मेघा सिंह के सरपंच पिताजी को
राजनीति करनेवाले दामाद की तलाश पूरी हो जाती है।
अंततः भ्रष्टाचार के हाईप्रोफाइल केस में सूर्य कुमार की मुलकात मेघा सिंह से फिर होता है।
उधर मानसी के पिताजी मानसी की शादी एक बड़े
बिजनेस घराने में कराना चाहते हैं। जिससे दोनों का
ब्रेकप हो जाता है। लंबे संघर्ष के बाद कुमार रणवीर एक
बेहतर लेखक बन जाता हैं। उसके नाॅवल के लिए
पाढ़क बेसब्री से इंतजार करते हैं। पूरी कहानी आपको अंत तक बांधे रखेगी।
इसका पहला भाग आपको कैसा लगा ? । इस पर आप अपनी प्रतिक्रिया जरूर दिजिये। आपकी प्रतिक्रिया को मैं अगले भाग में जरूर शामिल करेंगे।
Ch -1 गाँव से पलायन
बिहार की राजधानी पटना से 140 किमी. दूर यह शहर मोती झील
के किनारे बसा हैं। ऐसा लगता हैं इसी झील के कारण इसका
नामकरण मोतिहारी हो गया हैं । बाद मे गांधीजी के आगमन के बाद ।
यह क्षेत्र चंपारण हो गया। लेकिन यहाँ चंपा का पेड़ भी अधिक हैं
शायद इस कारण भी चंपारण पड़ा हो ऐसा वहाँ के लोगों का
मानना हैं । इसी शहर के पास एक गाँव चंद्रहासिनी हैं। इसी गाँव में
रवी मोहन और सोहन प्रकाश नाम के दो दोस्त रहतें हैं।
यहाँ के किसान अंग्रेजों के जमाने में निल की खेती से
परेशान थे। बाद मे गांधीजी के आगमन के बाद यहाँ की स्थित
थोड़ा बहुत सुधरा। लेकिन आजादी के बाद धीरे धीरे स्थित खराब
होते गया और गाँव से युवा शहर की ओर पलायन कर गये। इन्ही
युवाओं में से एक रवी मोहन और सोहन प्रकाश हैं।
रवी मोहन की शादी सुनैना से होती हैं। जो गाँव के कुछ दूरी पर
उसका मायके हैं। वही सोहन प्रकाश की शादी के 3 साल बीत गयें
थे उसका एक साल का एक बेटा सौर्य कुमार हैं। यहाँ रोजगार के
उचित विकल्प न होने के कारण दोनों दोस्त दिल्ली जाने के लिए
बात करते हैं।
सोहन प्रकाश कहता हैं - रवी जानते हो गाँव की स्थिति अब पहले
जैसी नहीं रही। नहीं पढ़ें लिखें भी अब यहाँ नहीं टिकते सब शहर
में जाकर मजदूरी करते हैं। सुना हूँ वहाँ ये अच्छे खासे कमा लेते
हैं। क्यों ना हम दोनों चलते हैं। हम दोनों तो ग्रेजुएट हैं शहर में कुछ
ना कुछ कर ही लेगें ना नौकरी मिली तो रोजगार ही कर लेगें। क्या
कहते हो?
' ठीक कहते हो भाई ' कल ही सुनैना कह रही थी क्यों ना शहर
जाकर कुछ रोजगार के बारे में सोचते हैं।
ठीक हैं रवी भाई ना होगा तो हम भी सुलेखा को साथ लेकर चलेगे,
वो भी पढ़ी लिखी है नौकरी कर लेगी तो घर में दो चार रूपया
अधिक आ जायेगा तो हमारी भी मदद हो जायेगी।
ठीक हैं सोहन , फिर दो दिन बाद चलते हैं। थोड़ा खेत में फसल हैं
उसको काटने में पिताजी का हाथ बँटा दे रहे हैं ऐसे भी खेती में
अब वो फायदा कहा रहा लागत बहुत लग रहा है और मुनाफा
कितना हो रहा है जान ही रहे हो। लगता है जिंदगी फैक्ट्री में
मजदूरी में गुजरेगी अपना घर, खेत और गाँव छोड़कर जाना
मजबूरी हो गया है।
दो दिन बाद रवी और सोहन अपनी पत्नी के साथ दिल्ली के लिए
घर से निकल पड़े रास्ते में -
महेंद्र काका और साथ में काकी भी थी जो देख लेतें हैं - अरे बेटा
सुबह - सुबह ये मोटरी लेकर कहाँ निकल पड़े और बेटा ईह
बहुरिया को भी कहाँ ले जा रहें हो। काकी शहर जा रहें हैं गाँव के
हालात तो आप को पता है यहाँ ना नौकरी हैं ना रोजगार हैं।
' ईह बात तू सही कहत बाडअ बेटआ लेकिन अब गाँव में ईह बड़ - बुजुर्ग ही बचीं....... पता ना का होई आगे.....? '
का कईल जायी काकी ठीक बा प्रणाम काकी, प्रणाम काका.. खु़श
रह.... खुश रह बेटा।
स्टेशन पहूंच कर -
रवी कहता है - सोहन ये पैसा लो जाओ चार टिकट जेनरल का ले
लेना।
ठीक हैं कहकर.... वह टिकट काउंटर जाता है । जेनरल काउंटर के
भिड़ देखकर वह अचंभित हो जाता है। इतनी बड़ी लाईन सब के
सब शहर जा रहे हैं।
' सही में काकी ठीक ही कहती थी अब गाँव बुजुर्गों का हो जायेगा.... '
थोड़ी देर में टिकट लेकर वो रवी की तरफ बढ़ रहा था तभी रवी
की जोर से आवाज सुनाई दी ... सोहन.. सोहन... सोहन जल्दी
आवो ट्रेन आ रही है।
सोहन दौड़कर आया। प्लेट फार्म पर ट्रेन आकर रूकी थी।
सोहन और रवी पहले अपनी पत्नी सुलेखा और सुनैना को ट्रेन पर
चढ़ने दिये फिर ये दोनों और साथ में सोहन का एक एक साल का
बच्चा सौर्य भी था।
जेनरल बोगी होने के कारण दो ही सीट मिला था जिस पर सुनैना और सुलेखा बैठ गये ।
सोहन कहता है - अरे भाई ट्रेन में इतनी भिड़ हैं देख रहे हो जेनरल
बोगी की हालत क्या है....? पता नहीं इस पर सरकार का ध्यान क्यों नहीं जाता।
गाँव में रहो तो वहाँ ना रोजगार हैं.... ना शिक्षा... ना स्वास्थ्य यहाँ ट्रेन की हालत देख ही रहे हो।
क्या बोलू सोहन - कही ना कही इसमें जनता की गलती हैं हम धर्म
और जात में उलझे रहते हैं। ना शिक्षा, ना रोजगार, ना चिकित्सा
की बात करते हैं। यहाँ तक कुछ लोग चंद पैसों की लालच में
अपना वोट बेच देते हैं। अपने हालात का जिम्मेदार हम जानता
खुद हैं। शिक्षित व्यक्ति रोजगार और नौकरी के लिए जेनरल बोगी
और शहर का धक्का खा रहा है और अनपढ़ सत्ता का मलाई खा
रहा है। हद तो तब हो जाता है जब उनके बेटे को भी बिना कुछ
किये मलाई मिल जाता है और गरीब केवल रैलियों में नारे लगाने और भिड़ लगाने के काम आते है।
बात करते हुए तकरीबन 18 घंटे की लंबी यात्रा के बाद वो पहूंच जातें हैं मेट्रो - सीटी दिल्ली......।
दिल्ली ज. से बाहर निकल कर वो गोपालपुर के लिए प्रस्थान करते
हैं। जहाँ इनके गाँव के कुछ लोग रहते हैं। इन्हीं के मदद से कमरे किराये पर लेकर वो रहने लगे।
एक सप्ताह बाद .....
दोनों दोस्त नौकरी ढूढ़ते -ढूढ़ते थक जाते हैं और सोचते हैं कुछ रोजगार करते हैं ।
लेकिन अगले दिन सुबह....
सोहन दौड़ते हुए रवी के पास आता है। अरे यार जानते हो हम
दोनों ने नोयडा के एक कंपनी में रेज्यूम सबमिट किये थे। वहाँ से मुझे काँल आया है। मैं आज नोयडा के लिए निकलता हूँ।
' ठीक हैं भाई तुम जाओ अच्छे से इंटरव्यू देना और सलेक्ट होकर आना मेरे भाई.... '
सोहन नोयडा के लिए निकल गया।
रवी अपनी पत्नी सुनैना को आवाज देता है।
सुनो सुनैना...
सुनैना - जी बोलिये क्या बात है।
रवी - सोहन की नौकरी नोयडा में लग जायेगी। फिर वो नोयडा में
रहने लगेगा। मैं सोच रहा हूँ क्यों ना मैं कुछ रोजगार शुरू करता हूँ।
तभी पानी वाले की आवाज आती है। पानी ले लिजिए।
क्या कहती हो सुनैना क्या रोजगार करे तुम कुछ बताओ।
पानी वाल पानी देकर चला जाता हैं।
सुनैना जवाब देती हैं क्यों ना बोतल बंद पानी हैं यही बेचना शुरू
किया जाये। इसमें ज्यादा पैसा भी नहीं लगता होगा। बाजार में
पता कर के शाम तक आयेगा। तब तक मैं खाना बनातीं हूँ। यह कह कर चली जाती है।
रवी तब तक रोजगार के बारे में सोचता । कुछ देर बाद खाना बन जाता है। दोनों खाना खाकर आराम करने चले जाते हैं।
शाम के समय रवी बाजार के लिए निकल जाता है तभी सोहन आता है। अरे भाभी जी रवी कहाँ है।
रवी बाजार गयें हैं बोलिये.... नौकरी मिल गयी साथ में सुलेखा को भी बोला लाये हैं सोचें हैं आज रात का खाना सब मिल कर खायेंगे।
ठीक हैं आईए बैठीये... और सुलेखा बहन कैसी हो ? ठीक हूँ।
लाओ सौर्य को थोड़ा मैं भी खेला लू अरे बाबू.... मेरा सोना.... बहुत मुस्कुरा रहा है।
थोड़ी देर बाद रवी आता है। अरे भाई आ गया।
हाँ , कल सुबह निकलेंगे यहाँ से अपना कहो... सब ठीक हैं मैं पानी का कारोबार करूँगा। ये भी अच्छा हैं।
सुनैना खाना बनाओ तब तक हम बातें करते हैं। और सोहन भाई
आते रहीयेगा । हाँ भाई नौकरी से छुट्टी मिलेगा तो इधर आ जायेंगे
घूमने। तुम अपना बिजनस अच्छा से शुरू करना कभी कोई मदद हो तो बोलना। जरूर भाई क्यों ना ?
थोड़ी देर में खाना बन गया। फिर खाना खाकर सोहन और सुलेखा अपने रूम के लिए निकल गयें।
कल सुबह ....
[ इस कहानी का पहला भाग कैसा लगा ? अपनी प्रतिक्रिया जरूर दिजियेगा । आप के सुझाव का स्वागत है। अगले भाग में आपके सुझाव को शामिल करेगें ]
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