हरिद्वार : देवभूमि उत्तराखंड

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हरिद्वार: हरि का द्वार अर्थात् भगवान का द्वार !   दोस्तों मेरा ये सफर हरिद्वार का था फिर आगे ऋषिकेश का ।  इस कड़ी में आप को हरिद्वार से रूबरू करवाते हैं। आप का कीमती  समय बर्बाद ना करते हुए चलिए सफर की शुरुआत आप के शहर से  करते हैं।       आप जिस भी शहर से आते हो यहाॅ आने के लिए सीधा या अल्टरनेट रुप से रेल की सुविधा है की नहीं ये देख लें। यदि  आप हवाई सफर का लुत्फ उठाना चाहते हैं तो फिर दिल्ली या  देहरादून आ सकते हैं और फिर वहां से यहां आ सकते हैं। यहां आने  के बाद आपको रहने के लिए कम बजट में आश्रम मिल जायेगा  जिसमें आपको एक कमरा उपलब्ध कराया जाएगा। ज्यादा बजट  में होटल की भी सुविधा है । आप अपने बजट के अनुसार ठहर  सकते हैं। ऑनलाइन गूगल मैप से भी अपने नजदीकी आश्रम और  होटल वालों से संपर्क कर सकते हैं।         यहां आने के बाद आपको यहां के प्रसिद्ध स्थल हर की पौड़ी आना होगा। यहां आने के लिए आपको रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड दोनों  जगह से आटो की सुविधा मिल जायेगा। आप यहां  • गंगा स्नान कर सकते हैं।  • सायंकाल गंगा आरती देख सकते हैं। नोट : गंगा घाट स्थल को साफ रखने की जिम्मेदारी पर्यटक की  भी

कवि क्या दुनिया का विधि निर्माता हैं ?


 19 वी सदी के रोमांटिक दौर के अंग्रेजी कवि सेली अपने निबंध ' दि डिफेंस अाॅफ दी पोयटरी ' में कहते हैं कि " कवि संसार के विधि निर्माता  हैं परंतु उन्हें उस विधि निर्माता की पहचान नहीं है " अर्थात अननाॅलेजड हैं। 
 अब हमें ये समझना होगा कि कवि होने के क्या गुण होना चाहिए ? अंग्रेजी साहित्य में कवि होने के चार प्रकार हैं। पहला यह हैं कि उस व्यक्ति में कल्पना हो तो वही दूसरा भावना हो , तीसरा तर्क शक्ति हो तथा चौथा अंत:ज्ञान (इनटीयूसन ) हो । यदि ये चार गुण जिस व्यक्ति में होगा वो कवि बन सकता हैं। हर दौर के कवि इन गुणों को अलग - अलग महत्व देते हैं। 
    भारतीय साहित्य के कवि भावना को ज्यादा महत्व देते हैं। महर्षि वाल्मिकी एक दिन  तमसा नदी पर स्नान करने के लिए जा रहे थे तभी उनकी दृष्टि वहां प्रेम निमग्न क्रौंच पक्षियों के एक जोड़े पर पड़ी। तभी एक व्याध्र ने अपने बाण से नर क्रौंच को मार दिया और साथी की मृत्यु से आहत मादा क्रौंच ने भी करुण-क्रंदन करते हुए कुछ ही पल में अपने प्राण त्याग दिये। यह करुण दृश्य देख  कर महर्षि वाल्मीकि का हृदय द्रवित हो उठा और पीड़ा से उनके मुख से सहज ही यह श्लोक निकला -

  मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः। यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्॥

 अर्थात्– अरे बहेलिये (निषाद), जा तुझे कभी भी प्रतिष्ठा की प्राप्ति नहीं हो पायेगी। तूने काममोहित मैथुनरत क्रौंच पक्षियों के जोड़े में से कामभावना से ग्रस्त एक का वध कर डाला।
 वहीं सुमित्रानंदन पंत लिखतें हैं -

           " वियोगी होगा पहला कवि 
              आह से निकला होगा ज्ञान 
             निकल कर आँखों से कविता
             चुपचाप बही होगी अंजान "

लेकिन ये जरूरी नहीं हैं कि कवि भावनात्मक हो तभी कविता कर सकता हैं वो कभी भी कविता कर सकता हैं जब उसे क्रोध  हो , खुशी हो या दुखी हो। यह भी ध्यान देना होगा की भावना इतना भी ज्यादा ना हो कि तर्कसंगत प्रतीत ना हो। उचित भावना तथा तर्क का समावेशन उसे काव्य में तब्दील कर देगा। 
             काव्य लिखने वाले ये कवि कल्पना , भावना, तर्क और अंत:ज्ञान के आधार पर एक बेहतर दुनिया का निर्माण कर सकते हैं। शायद यह भी हो सकता हैं कि हम जिस दुनिया में रहते हैं उसका निर्माण कवि ने किया हैं। लेकिन सोचने वाली बात यह हैं कि यह अननाॅलेजड अर्थात पहचाने योग्य क्यों नहीं हैं। इसका एक कारण ये हो सकता हैं कि हमनें कभी इस दृष्टि से सोचा नहीं होगा की कवि भी दुनिया का विधि निर्माता हो सकता हैं। 
तो वही दूसरा कारण यह भी हो सकता हैं कि दुनिया के निर्माण में कवि की अप्रत्यक्ष भूमिका हैं।  इसलिए सेली का कथन सही प्रतीत होतें हैं। 
       लेकिन इसका दूसरा पहलू भी हैं। क्योंकि ये जरूरी नहीं हैं कि ये गुण कवि में हो। हो सकता हैं कि ये गुण किसी वैज्ञानिक में भी हो। 
दूसरी बात ये कि कुछ कवि ऐसे भी हैं। जिन्होनें भावना की अवधारणा को खारिज कर दिया। जैसे - अज्ञेय 
अज्ञेय लिखते हैं -

        "  सूनो कवि, भावनाएं नहीं सोता 
             भावना तो वस खाद्य हैं केवल 
       जरा उनको दबा रखो , जरा सा पचने दो  " 

तो वही पहली कविता ये जरूरी नहीं कि वाल्मीकि के समय के हो , हो सकता हैं कि उससे पहले भी कविता लिखी गयी हो । क्या कवि होने के चारों प्रमाण ठोस है। प्लेटों जैसे दार्शनिक  ' द रिपब्लिक ' में एक आदर्श राज्य की बात किए हैं जिसमें कवि को पूरी तरह से खारिज करते हैं। और उसे आदर्श राज्य से बाहर करने की बात करते हैं। 
   अत: ये कहना कि कवि ही दुनिया का विधि निर्माता हैं परंतु उसे पहचान नहीं ( अननाॅलेजड) हैं। यह अतिशयोक्ति हैं। और इस बात को पूरी तरह से खारिज कर देना की कवि का इस सभ्यता में योगदान नहीं हैं और उसे आदर्श राज्य से बाहर कर देना चाहिए यह भी अतिशयोक्ति का दूसरा सिरा हैं। अंततः कह सकते हैं कि दुनिया के सभ्यता के विधि निर्माण में चिंतक, वैज्ञानिक, पर्यावरणविद,समाज चिकित्सक, इंजीनियर, गणितज्ञ, अर्थशास्त्री या अन्य का जितना स्थान हैं उसमें एक कवि का भी स्थान हैं। 
 

  

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