नवम्बर का महीना था, सर्दी की शुरुआत हुई थी हर कोई एक नये लुक में नजर आ रहा था हाल ही में मैंने भी इस नये शहर मेें दस्तक दिया था सूना तो था कि यह दिलवालों की नगरी है लेकिन यकीन नहीं था अब आपलोग समझ गयें होगें । नाम बताने की जरूरत नहीं समझता खैर अब इस शहर में आ गये है तो इस शहर को करीब से देखने के लिए उतावला था। हमारी टीम कंपनी के एक खास प्रोजेक्ट में लगी थी जिसके कारण हम व्यस्त रहते थे लेकिन हमारी कोशिश रहती थी कि जल्द से जल्द प्रोजेक्ट को कंपलीट कर शहर के भ्रमण पर निकले । करीब एक महीने के बाद वह दिन आ ही गयी जिस दिन की हमें इंतजार थी।
हमारी टीम को कंपनी की तरफ से पंद्रह दिन की छुट्टियां दी गई थी। हर कोई आनेवाले पंद्रह दिन को खास बनाने का प्लान कर रहा था। कोई अपने पुराने रिश्तेदार से मिलने की बात करता तो कोई गर्लफ्रेंड से मिलने की बात करता तो कोई अपने ब्वॉयफ्रेंड से मिलने की बात करती । हमारे तो न रिश्तेदार थे न कोई गर्लफ्रेंड। मैं तो इस शहर के आबोहवा को दिल में उतारने के लिए बेताब था । मैंने तो अलार्म लगाया आॅख बंद किया । सुबह जग कर तैयार हुआ , चाय की चुस्की लिया और निकल पड़ा मेट्रो स्टेशन....कुछ घंटों ...में हम शहर के प्रसिद्ध टूरिज्म प्लेस पहुंचे खैर नाम बताने की जरूरत नहीं। चलिए देखते हैं आगे क्या हुआ...!!
टूरिज्म प्लेस के पास करीब दो सौ भिड़ थी जो लाईन में लगी हुई थी देखकर अचंभित हो गया । इतना भिड़ मैंने सोचा भी नहीं था । खैर अब आ गया हूँ तो घुमना ही पड़ेगा यही सोचकर लाईन में लग गया और मोबाईल पर व्यस्त हो गया तभी अचानक किसी की मधुर ध्वनि की आहट कानों में पड़ती है ।
इसकियुजमी क्या आप इन बच्चों को देख सकते है इनके लिए कुछ खाने की सामान लानी है मैंने पीछे मुड़कर देखा करीब 10 - 15 बच्चें इनमें से कुछ बड़े बच्चे भी थे तो कुछ ब्लाइंड बच्चें । मैंने हाॅ बोल दिया और वह चली गयी उसके जाने के बाद मैंने बच्चों से बात किया। सब एक चिल्ड्रेन फाउंडेशन से घुमने के लिए आये थे। बच्चों की बातें मुझे मेरी वजूद याद दिला दी बचपन से सोचता था कि मुझे समाज के लिए कुछ करने का अवसर मिलेगा तो जरूर करूँगा लेकिन वह दिन आज तक नहीं मिला । काॅलेज समाप्त हो गया मिडिल फेमिली से होने के कारण जल्द से जल्द जाॅब करने की एक जिम्मेदारी भी थी । अभी सोच ही रहा था की वह आकर थैंक्स बोली मैंने भी इटस ओके बोल दिया फिर सब बच्चों को खाने का सामान देकर लाईन में लग गयी। कुछ देर बाद हम दोनों के बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ...!
दोनों के बीच लम्बी बातचीत चलीं करीब एक घंटे बाद हमारा नं आया और हमने अंदर प्रवेश किया। अंदर प्रवेश करने के बाद कुछ बच्चे जोर से चिल्लाने लगे , उन सब को शांत कर ब्लाइंड बच्चों को दृश्य का वर्णन कर उसे प्यार से समझाती और इस प्रकृति से रूबरू कराती। करीब दो घंटे घुमने के बाद वापस आने के लिए बाहर निकले। बाहर आने के बाद उसने अपना नाम और अपने फाउंडेशन का पाता लिख कर दी दोनों एक दूसरे को बाॅय बोले , बच्चों से फिर मिलेंगे बोलकर अपने घर की ओर निकल पड़े। उसका नाम मीरा था।
घर आने के बाद अब मैंने सोच लिया कंपनी से रिजाइन देकर मीरा के फाउंडेशन के लिए कार्य करेंगे उसको भी पार्टनर मिल जायेगा फिर हम दोनों की सोच मिलती हैं तो अलग - अलग फाउंडेशन बनाने की क्या जरूरत....!!
[ समय की कमी होने के कारण पूरी कहानी नहीं लिख पायें है , कोशिश करूंगा खाली समय में इसकी अगली कड़ी जल्द लेकर आप के सामने आये ]
धन्यवाद..!
— © अमलेश
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