वसंत ऋतु के इस मौसम मेँ चारों - ओर प्यार की धुन इन वादियों मेँ गुज रहीं थी । मौसम रंगीन था पेड़ - पौधे , पशु - पक्षियों पर भी इस मौसम का जादू चल रहा था । मानों पूरी वादियाँ प्यार में रंग गई थी फिर प्रेमी युगल क्यों इस मौसम की मार से बच्चे । हर प्रेमी युगल एक दूसरे मेँ खोये हुए थे । ऐसा लग रहा था मानों इससे अच्छा और कोई मौसम हो नहीं सकता । ऊपर से वेलेंटाइन डे प्यार मेँ चार चाँद लगा दे रहा था ।
इसी मौसम मेँ एकतरफ जहाँ वेलेंटाइन सप्ताह चल रहा था वहीं दुसरी तरफ काँलेज का कैंपस सीजन चल रहा था । प्रत्येक प्रेमी युगल कैंपस में सेलेक्ट होकर अपने प्यार मेँ चार चाँद लगाना चाहते थे । इसी प्रेमी जोडें मे से एक मैं भी था ।
मैं Mr. यश सक्सेना और मेरी प्रेमिका या कहें तो मेरी हमसफर Ms . मालनी सक्सेना अपने सपनें और प्यार मेँ चार चाँद लगाने में जुड़े हुए थे । हमारी प्यार और मुहब्बत की शुरुआत काँलेज के दिनों से था लेकिन इजहार और दूरियाँ इस वसंत के मौसम में परवाना चढ़ रहा था और वेलेंटाइन सप्ताह मेँ इकरार में बदल गया ।
मालनी से प्यार का इजहार करना आसान नहीं था लेकिन कहा जाता है कि प्यार के आगे सभी डर खत्म हो जाता हैं । ऐसा मेरे साथ भी हो रहा था । मेरा प्यार अब इस मौसम मेँ अंगडाई ले रही थी । आखिरकार वह दिन आ हीं गया करीब 2 बजे रात का समय था मालनी फेसबुक पर आँनलाइन थी । मैंने मालनी को अपना संदेश टाईप कर सेंट कर दिया : ---
" मालनी मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ , मैं तुम्हारे करीब होकर भी दूर हूँ ना जाने क्यों यह राज अब राज नहीं रहेगा क्योंकि इस राज को मैंने कब से अपनेे दिल में दफन कर के रखा हैं जो शायद थम नहीं रहा हैं ..."
मालनी :- बच्चू लगता हैं तुम नींद में हो । क्या क्या बक रहे हो । अच्छा यार अब सो जाओं बहुत रात हो गई हैं । कल कैंपस में जाना है । वहीं आना काँलेज के पार्क में मिलते हैं ।
मालनी के जवाब देखकर मैं बहुत खुश हुआ लेकिन इस खुशी के साथ एक गम भी था जब मालनी आँफलाइन हो जाती तो बहुत दुख होता था । उससे बातें करना कितना अच्छा लगता था । इसका वर्णन मैं आज भी नहीं कर सकता हूँ और कल भी नहीं कर सकता था । मैं क्या कोई भी प्रेमी युगल अपने चाहत का वर्णन नहीं कर सकता । प्यार मेँ चाहत अच्छी बात हैं लेकिन वैसी चाहत किस काम की जिसमें दोनों का नुकसान हो ।
अब इंतजार था सुबह के उस समय का जब हम अपने प्यार में रंग भरने जा रहे थे । यह बातें सोचकर ना जाने मुझे कब नींद आ गई । अचानक मेरी कान में घंटी की धुन सुना रही था । तुरंत मेरी नींद खुली घड़ी मेँ देखा 8 बज रहे थे । मैने आवाज लगाया मैं आ रहा हूँ 5 मिनट फिर दौड़कर गेट की तरफ गया । दरवाजा खोला देखा पड़ोस की सीमा अंटी थी । मैंने बोला अंटी जी थोड़ा नींद लग गई शायद रामू भी आज नहीं आया ।
सीमा अंटी – यश बेटा आज काँलेज नहीं जाना हैं । रामू आकर चला गया शायद आप नींद में थे । यहाँ दूध रखकर चला गया हैं आप उठा लो मैं जा रही हूँ ।
फिर मैं दुध का बर्तन उठाया और फटाफट चाय और नास्ता तैयार किया और काँलेज के लिए निकल गया ।
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धन्यवाद ..!!
– अमलेश
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