हरिद्वार : देवभूमि उत्तराखंड

चित्र
हरिद्वार: हरि का द्वार अर्थात् भगवान का द्वार !   दोस्तों मेरा ये सफर हरिद्वार का था फिर आगे ऋषिकेश का ।  इस कड़ी में आप को हरिद्वार से रूबरू करवाते हैं। आप का कीमती  समय बर्बाद ना करते हुए चलिए सफर की शुरुआत आप के शहर से  करते हैं।       आप जिस भी शहर से आते हो यहाॅ आने के लिए सीधा या अल्टरनेट रुप से रेल की सुविधा है की नहीं ये देख लें। यदि  आप हवाई सफर का लुत्फ उठाना चाहते हैं तो फिर दिल्ली या  देहरादून आ सकते हैं और फिर वहां से यहां आ सकते हैं। यहां आने  के बाद आपको रहने के लिए कम बजट में आश्रम मिल जायेगा  जिसमें आपको एक कमरा उपलब्ध कराया जाएगा। ज्यादा बजट  में होटल की भी सुविधा है । आप अपने बजट के अनुसार ठहर  सकते हैं। ऑनलाइन गूगल मैप से भी अपने नजदीकी आश्रम और  होटल वालों से संपर्क कर सकते हैं।         यहां आने के बाद आपको यहां के प्रसिद्ध स्थल हर की पौड़ी आना होगा। यहां आने के लिए आपको रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड दोनों  जगह से आटो की सुविधा मिल जायेगा। आप यहां  • गंगा स्नान कर सकते हैं।  • सायंकाल गंगा आरती देख सकते हैं। नोट : गंगा घाट स्थल को साफ रखने की जिम्मेदारी पर्यटक की  भी

किसान ' राम सिंह '

यह कहानी करीब 22 वर्ष पहले की हैं । हमारा वतन हिन्दुस्तान के रामपुर गाँव की कहानी हैं । उसी गाँव में एक साधारण किसान राम सिंह रहता था । जो बहुत ही ईमानदार और स्वभाव से धनी था । उसके चार बच्चे थे पिंकू , टिंकू , रिंकी और पिंकी । राम सिंह रोज सुबह जागता और अपने दोनों बैल बलवान और बलि के साथ खेतों पर निकल जाता । बलवान और बलि भी अपने मालिक के लिए खूब मेहनत करते । राम सिंह भी अपने बलवान - बलि को खूब मानता । उनके भोजन के लिए अच्छे - अच्छे चारा की व्यवस्था करता । कभी कभार यदि चारा नहीं मिलता फिर भी बलवान और बलि अपने मालिक को निराश नहीं करते जो मिलता वही खा लेते ।
            एक दिन राम सिंह अपने खेतों की ओर जा रहा था तभी गाँव के दो व्यक्ति उसपर ताने कसने लगे मैं धोटा था इसलिए ज्यादा तो नहीं समझा ।
रामलाल - भाई श्यामलाल देखो राम सिंह को आजकल बहुत मेहनत कर रहा हैं । लगता हैं मर जाएगा तो सब खेत - बाड़ी लाद कर ले जाएगा ।
श्यामलाल :- अरे भाई रामलाल तुम नहीं जानते हो , अपने सरपंच साहब गये थे दिल्ली कल ही लौट कर आये हैं । उनका लड़का कलक्टर की तैयारी करता हैं । वहीं बता रहे थे की राम सिंह अपने बेटवा के कलक्टर बनाने का सपना देख रहा हैं ।
रामलाल :- कलक्टर क्या होता हैं उसे पता हैं ? जो भी खेती करता हैं वो भी नहीं बचेगा । कभी शहर गया हैं दिनभर खेत में काम करता हैं और चला बेटवा के कलक्टर बनाने ।
उसे बहुत सारे ताने सहने पड़ते लेकिन वह उसकी तरफ ध्यान नहीं देता । उसकी मेहनत को देख गाँव के डाक बाबू उसकी हिम्मत को बढ़ाते थे । कुछ वर्षों के बाद उसके बच्चे स्कूल जाने लगे ।
उसके दोनों बड़े बच्चे जब स्कूल जाने लगे । रोज रात को अपने माँ और बापू से अपने स्कूल की कहानी सुनाते और अपने माँ और बापू से कहानी सुनते और अपने दोनों छोटी बहना को भी सुनाते । बड़ा थोड़ा सांत स्वभाव के था तो छोटा शरारती था लेकिन अपने माँ और बापू के संस्कार को कभी नहीं भूलता था । दोनों भाई मिलकर रहते थे । कभी कभार पढ़ाई से समय निकाल कर अपने बापू के साथ अपने खेतों मे भी कार्य करते ।
एक दिन स्कूल की छुट्टी होने के बाद रास्ते मे छोटा भाई बड़े भाई से कहा , भाई मुझे तो बड़ा होकर कलक्टर बनना हैं । बड़ा भाई उसके हौसले को बढ़ाता और कहता हाँ , छोटू तुम कलक्टर नहीं बनोगे तो फिर कौन बनेगा । छोटा भाई बहुत खुश हुआ और फिर दोनों बात करते हुए घर आ गये ।
         बेटे को देखकर माँ अवाज देती हैं , बेटा हाथ धोकर आ जाओ खाने , खाना निकाल दी , तुम्हारे बापू भी खेत से आ गये हैं । आओं साथ में खा लेते हैं । दोनों हाथ धोकर और दौड़ कर आये और अपने बापू के साथ खाने लगे तभी छोटा अपने बापू से कहता हैं बापू आज आप को कुछ बतायेंगे । आप शाम को घर आयेंगे उसी समय ।
        इस कहानी की अगली कड़ी पढ़ने के लिए हमारे ब्लॉग से जुड़े रहे ।
       
                                          ✍ अमलेश
धन्यवाद !

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

भारत में अधिकतर कृषकों के लिए कृषि जीवन - निर्वाह का एक सक्षम स्त्रोत नहीं रही हैं । क्यों ?

डिजिटल गर्ल फ्रेंड( Digital Girlfriend )

शिक्षा का राजनीतिकरण (Politicization Of Education)

किसानों के बिना न्यू इंडिया का सपना अधूरा है ।