काली रात की एहसास ( भाग - 2 )
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जब मैं उस पहाड़ी पर पहुंचा तो फिर एकाग्रता से उसके आहट को सुनने लगा तभी अचानक । मुझे एहसास हुआ की कोई मुझसे लिपट रहा हैं जब मैने पीछे मुड़कर देखा कोई नहीं हैं मैं डर गया । मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था इतनी रात को इस पहाड़ी पर आखिर एक लड़की की आवाज क्यों आ रही हैं और मुझे क्यों आवाज दे रही हैं जबकि मैं कभी यहाँ आया तक नहीं कि शायद मेरा रहम हैं मैं बहुत उलझन में था और बहुत डर गया , इतना डर गया था कि डर के मारे बेहोश हो गया । अगले दिन जब आँख खुली तो सामने अपने दोस्तों को देखा ।
शायद मुझे ढूँढते हुए मेरे दोस्त पहाड़ी पर आ गये थे । उन्हें भी कुछ समझ मे नहीं आ रहा था कि मैं यहाँ क्या करने आया था खैर हमने अपने रूम पर आया मुझे अकेला आराम करने के लिए छोड़ दोस्त अपने रुम मे चले गये । कुछ देर के बाद जब मेरी आँखें खुली तो दोस्तों ने मुझसे उस रात की राज जानने की कोशिश की मैंने उन्हें सब सच्च - सच्च बता दिया लेकिन उन्हें यकीन नहीं हो रहा था । सब बोलने लगें क्या बकवास करते हो यार कहीं ऐसा होता हैं , सब बकवास हैं तुम बिना मतलब इतने डर रहे हो सब कहानियों और फिल्मों मे होता हैं लेकिन मुझे इतना विश्वास था कि जरूर कुछ ना कुछ राज हैं उस पहाड़ी का लेकिन हमलोगों को पता नहीं हैं ।
फिर हम अगले रात का इंतजार करने लगा की शायद अगले रात उस पहाड़ी का राज जान जाऊंगा । मन ही मन मैं सोच रहा था कि अगले दिन तो कुछ ना कुछ पता करके रहेंगे । अगले रात हिम्मत के साथ और पूरे तैयारी के साथ उस पहाड़ी पर गया । एक ऐसी आवाज गुन - गुना रहा था मानो कोई बिछड़ गया हो और किसी को आवाज दे रहा हो फिर मैंने और अच्छे से सूनने की कोशिश की तो वो उसी लड़की की आवाज थी जो उस रात सूना रही थी लेकिन मै चाह कर भी उसकी मदद नहीं कर सकता था ।
✍ अमलेश कुमार ' प्रसाद '
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